Akhil Bhartiya Grahak Panchayat

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Online buyers can sue sellers anywhere : SC

सभी आॅनलाईन पर्चेस करनेवाले ग्राहकोंको एक खुशखबर है! अगर आपने वेबसाईटसे, ई पोर्टल्स, एप जैसे  अमेझाॅन ईत्यादिसे कुछ खरेदि कि है तो आप कहिसेभी अपने नजदिककि  ग्राहक न्यायालय मे तक्रार दाखील कर सकते हो. सुप्रिम कोर्टने एक ग्राहकने यात्रा.काॅम के वेबसाइट द्वारा  स्पाईसजेट कि बुकिंग कि थी और बादमे स्पाइसजेटने फ्लाईट रद्द कि ऊसके बारेमे नॅशनल कमिशनने ग्राहक के हकमे फैसला दियाथा. ऊसपर सुप्रिम कोर्टाने यह फैसला दिया. तो अब आप सभी ग्राहक अपनी आॅनलाइन खरेदिकि कोइभी शिकायत नजदिककि ग्राहक नयायालयमे करे. विजय सागर अध्यक्ष अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत पुणे महानगर शाखा ६३४, सदाशिव पेठ, कुमठेकर रस्ता, पुणे ४११०३० Three Cheers to Online Buyers ONLINE BUYERS CAN SUE SELLERS ANYWHERE: SC Online consumers can sue a company for deficiency in services at any consumer court of their choice. At times when e-commerce trading is growing rapidly, *this ruling from the Supreme Court* has brought a big relief for consumers going for online purchase of products through websites and e-commerce apps. In over-the-counter purchases, a consumer can file a complaint in the consumer court only within the local limits where the company/ opposite party resides, carries on business or where the transaction takes place. *A Bench of Justices Adarsh K Goel and S Abdul Nazeer on Friday upheld a ruling of the National Consumer Dispute Redressal Commission (NCDRC)* six months ago. The NCDRC had ordered budget carrier *Spicejet* to pay Rs 1.25 lakh compensation to a passenger for cancellation of flight. A Chandigarh-based woman, *Rajni Aery*, booked a ticket (Chandigarh to Delhi via Bagdodra and Kolkata) on yatra.com on June 23, 2015 by paying Rs 70,900. The airline cancelled her return flight from Kolkata to Delhi without any reason and provided her no alternative. She approached the consumer court in Chandigarh and secured an order against Spicejet Courtesy: http://www.dailypioneer.com/todays-newspaper/online-buyers-can-sue-sellers-anywhere-sc.HTML
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Precautions to be taken while Purchasing Flat

नमस्कार आप सभी लोग ग्राहक पंचायत के काम मे गत कई सालोसे अवगत है. हर एक आदमी का एक सपना होता है की अपना घर हो. देहात मे अभी भी जगह लेके स्वतंत्र घर का नियोजन करते है. मगर शहरोमे ऐसा  नियोजन करनेवाले बहूत अमीर लोग होते है. हम आज शहरोमे फ्लॅट या अपार्टमेंट ही खरीद पाते है. और ऊसकेलीये भी कर्जा/रीण लेना अनिवार्य है. हम चाहे घर, जमीन, फ्लॅट, व्हीला या अपार्टमेंट कूछ भी खरीद करते है तो वह ग्राहक है.

मगर क्या यह ग्राहक जागृत है?. नही. बडे अफसोस की बात है की इतनी बडी खरेदी करनेवाला ग्राहक, अपने जीवनकी अधीकतम कमाई (लोन लेके) खर्च करता है मगर सही जगह पे सही तरीकेसे यह पैसा लगता है क्या उसका विचार नही करता.

रोजकी जीवन मे लगनेवाली सब्जी के बारेमे जीतना सोचता है या जागृत होता है उतना फ्लॅट खरेदी मे नही होता है. सब्जीमे एखाद दूसरा आलू खराब निकला तो  ₹2 का नुकसान होता है मगर घर खरेदी मे लाखो रुपये का नुकसान होता है.

घर खरेदी करते वक्त क्या क्या देखना चाहीये देखिये.

1. घर की जगह बाजार, स्कूल, और दफ्तर से नजदीक है.

2. जगह कीसकी नाम पर है. अगर बिल्डर के नाम पर नही है तो उसकी डेव्लपमेंट अॅग्रीमेंट बिल्डर के साथ हूई है क्या. यह अॅग्रीमेंट रजिस्टरेशन कीया है क्या. उसमे बिल्डर को खरेदी बिक्री के अधिकार दिये है क्या

3. जमीनका 7/12 या रेव्हेन्यू खाता कीसकी नाम पर है. सिटी सर्व्हे ऑफीसके रेकॉर्ड मे कीसका नाम है.

4. जमीन खरेदी की है या लीज पे ली है. उसका टायटल क्या है.

5.जमीन के रेकॉर्ड की प्रतीलीपी अगर बिल्डर ने  दिया है तो आप स्वतंत्र से रेव्हेन्यू खाते से जाच कराईये. (बहूत बार हमे बोगस प्रतीलीपी दी जाती है )

6. जमीन स्वकष्टसे ली है या जमीन अगर बापजादेसे ट्रान्स्फर हुई है तो उसमे सभी खुनके रीस्तेदारोंका का अधीकार होता है. ऊन सभी का हक बिल्डर ने लीया है क्या

7. जमीन सरकारने कीसी कारणवश अधिग्रहित की है क्या.

8. जमीन के ऊपर कूछ कर्जा है क्या.

9. जमीन के ऊपर औरोके अधीकार है क्या.

10. जमीन अकृषीक  की है कया (non agricultural)

11 जगह ग्रामपंचायत/नगरपालीका/महानगरपालीका मे है तो ऊचीत स्वायत्त संस्था की मंजूरी ली है क्या. सर्च रीपोर्ट निकालीये. गत तीस साल की जमीनका कब्जा और मालीक का नाम का रीकाॅर्डकी जाच कीजिये.

12. जगह बीस हजार फूट से बडी है तो पर्यावरण आयोग की मंजूरी ली है क्या (ग्रीन ट्रायबूनल)

13 प्लॅन को मंजूरी मीली है क्या. कीतने फ्लोअर के लीये मंजूरी मीली है. सीर्फ प्रतीलीपी मत देखिये. स्वयम ग्रामपंचायत/नगरपालीका/महानगरपालीका मे जाके जानकारी लीजीये या एडव्होकेट की नियुक्ती कीजिये.

14.  फ्लॅट का क्षेत्र कीतना है बिल्टअप/कारपेट/सेलेबल/सूपर बिल्टअप ऐसे नाना वीध नामसे बिक्री करते है मगर फ्लॅट ओनरशीप अॅक्ट 1963 के मुताबीक सीर्फ कारपेट येरीया से ही बीक्री करनी चाहीये.

15 फ्लॅट की ऊंची कीतनी है. मंजूर प्लॅन मे कूल जगह का एरीया, कीतने फ्लॅट, कीतने टाईपके फ्लॅट,  फ्लॅट की एरीया (क्षेत्र), हर फ्लॅट का अलग नक्षा, सेक्शन व्हू ( फ्लॅट काटनेके बाद कैसा दिखेगा) ले आऊट प्लॅन मे कीतनी ईमारत है, पार्किंग कैसा है, सविस्तर सूवीधा कैसी है आदी  जानकारी रहती है. मंजूर प्लॅन पर ग्रामपंचायत/नगरपालीका/महानगरपालीका का सील, स्वाक्षरी और फाईल नंबर रहता है.

16. कंन्स्ट्रक्शन करने के लीये ग्रामपंचायत/नगरपालीका/महानगरपालीका का कमेन्समेन्ट सर्टीफिकेट लेना अनिवार्य है. कई जगह पे टाऊन प्लॅनीग की मंजूरी लेना अनिवार्य है.

17. अंदरका चटई बीछाने लायक एरीया को कारपेट एरीया कहते है. दो दिवारोके बिच का अंतर नापके आप आसानीसे कार्पेट एरीया निकाल सकते है. बिल्टअप एरीया के लीये बाजूवालेकी आधी दिवार नापने के लीये पकडते है. जैसे की अगर रूम का अंदरका साईज 10'×10' है तो कारपेट एरीया 100 फीट. अगर दिवारे काॅमन है और दिवार 6" की है तो बिल्टअप साईज 10'6"×10'6" होगी और बिल्टअप क्षेत्र 110 फीट होगा. मगर बिल्डर हमे 25% से 35% कारपेट मे मीलाके बेचते है. सचमेतो बिल्टअप एरीया कारपेट से 10% जादा है. तो एरीया अगर कम दिया है और 100 फ्लॅट की स्कीम है तो बिल्डर कीतना हम से लूटते है. 1000 स्क्वेअर फीट का फ्लॅट 1300 स्क्वेअर फीट बताके 100 फ्लॅट के पीछे 30000 स्क्वेअर फीट के पैसे हडप लेते है. एक स्क्वेअर फीट का दर ₹3000 पकडा तो एक सौ फ्लॅट की स्कीम मे ₹90000000 (नौ करोड)  ऐसे ही हडपते है.

18 फ्लॅट की ऊंचाई मंजूर प्लॅन मे 10 फीट है और अगर 9'6" दि जाती है. तो  सौ फ्लॅट मे 50' ऊंचाई कम याने 5 फ्लॅट ग्राहक के पैसेसेही मुफ्त मे लेते है. और एक फ्लॅट का तीस लाख कीमत पकडा तो देड करोड लूटते है.

19 रजिस्टरेशन अॅक्ट 1908 मूताबीत आपका करारनामा (अॅग्रीमेंट) बिल्डर के साथ ( फ्लॅट की टोटल कीमत की 15% रक्कम देनेके बाद) करके उसका रजिस्टरेशन करना अनिवार्य है.

20 रजिस्टरेशन का खर्चा ग्राहक को करना है उसमे स्टॅप ड्युटी,  रजिस्टरेशन फी, वकील की फी इत्यादी खर्चा होता है. हर राज्य मे अलग अलग प्रोसीजर है

और  आगे .........

आगला लेख जरूर पढे

विजय सागर 9422502315 अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत पुणे महानगर विलास लेले 9823132172 श्रीकांत जोशी 9850059020 सौ सीमा भाकरे 9860368123

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Vijay Sagar

National consumer case of flat purchaser jointly file

*3 Cheers to all flat purchaser consumers.*

on 7 Oct 2016 National Commission Full Bench has given historical judgement in case no *97/2016*

All Flat buyer consumers can jointly file complaint under sec *12 (1)(c)* of CPA and ask relief from National Commission irrespective of cost of compensation and this case can be filed by consumer organisation like Akhil Bhartiya Grahak Panchayat.

*Case value is decided by adding Cost of flat+compensation demanded*

Once case has been filed as representative then other consumers can join this case as party and no separate case needs to file.

The judgement of forum/commission  is automatically apply to the other consumers if they apply afterwards.

Society or Apartment of association will not be in a position to file complaint as they are not direct consumer of builder but group of complainants can file the complaint with similar intrest though date of booking, amount is different.

So Akhil Bhartiya Grahak Panchayat is ready to file complaints if consumers approaches us and we will file representative case on behalf of all consumers.

Please contact Akhil Bhartiya Grahak Panchayat Pune

634, Sadashiv Peth, above WANI cloth shop, Fadtare Chowk, Kumthekar Road, Pune 411030 Ph. 02024460707 Every Mon, Tue, Wed and Fri at 1730 to 1930 hrs.

Vijay Sagar 9422502315 Vilas Lele 7588235664 Shrikant Joshi 9850059020 Seema Bhakre 9860368123 Kiahor Kulkarni 8308325295

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Vijay Sagar

Land reforms act

जमीनीला कूळ लागणे हा वाक्यप्रयोग आता आपल्याला चांगला माहिती झाला आहे.

कूळ म्हणजे काय?

कूळ कसा तयार होतो?

कूळाचे कोणते हक्क असतात?

आणि शेत जमीन व कूळ यांचे कायदेशीर संबंध काय असतात?

याची आज आपण माहिती घेऊ."

कसेल त्याची जमीन " असे तत्व घेऊन कूळ कायदा अस्तित्वात आला. दुसर्‍याची जमीन कायदेशीररित्या कसणारा व प्रत्यक्ष कष्ट करणारा जो माणूस आहे त्याला कूळ म्हटले गेले. सन 1939 च्या कूळ कायद्यानुसार सर्वप्रथम जमीनीत असणार्‍या कायदेशीर कूळाची नांवे 7/12 च्या इतर हक्कात नोंदली गेली. त्यानंतर 1948 चा कूळ कायदा अस्तित्वात आता. त्याने कूळांना अधिक अधिकार प्राप्त झाले. सुधारित कायद्यानुसार कलम-32-ग नुसार दिनांक 1/4/1957 रोजी दुसर्‍याच्या मालकीची जमीन कायदेशीररित्या करणार्‍या व्यक्ती या जमीन मालक म्हणून जाहिर करण्यांत आल्या. या जमीनी यथावकाश प्रत्यक्ष प्रकरणाच्या निकालाप्रमाणे कूळांच्या मालकीच्या झाल्या. गेल्या 40 वर्षामध्ये राज्यातील बहुसंख्य कूळ कायद्याच्या प्रकरणांचा निकाला लागला आहे. तरीदेखील वेगवेगळया कारणामुळे किंवा वरिष्ठ न्यायालयात चाललेल्या अपिलांमुळे अजूनही कूळ कायद्यांचे हजारो दावे प्रलंबित आहेत.कूळ हक्क :आजरोजी जमीन कसणार्‍या कूळांचे किंवा मालकांचे, कूळ हक्कासंबंधी काही महत्वाचे मुद्दे असून ते समजल्याखेरीज कूळ हक्काबाबत स्पष्ट जाणीव शेतकर्‍यांमध्ये होणार नाही. हे मुद्दे खालीलप्रमाणे आहेत.

(1) सन 1939 च्या कूळ कायद्यात दिनांक 1/1/1938 पूर्वी सतत 6 वर्षे कूळ म्हणून जमीन करणार्‍या व्यक्तीला किंवा दिनांक 1/1/1945 पूर्वी सतत 6 वर्षे जमीन कसणारा आणि दिनांक 1/11/47 रोजी जमीन कसणारा कूळ या सर्वांची नोंद नोंदणीपत्रकात संरक्षीत कूळ म्हणून केली गेली.

(2) सन 1955 साली कूळ कायद्यात काही सुधारणा करण्यांत आली. ही सुधारणा करण्यापूर्वी वहिवाटीमुळे किंवा रुढीमुळे किंवा कोर्टाच्या निकालामुळे ज्या व्यक्तींना कायम कूळ म्हणून संबोधण्यांत आले व ज्यांची नोंदणी हक्कनोंदणी पत्रकात कायम कूळ म्हणून नोंद केली गेली त्या सर्वांना कायम कूळ असे म्हटले जाते.

(3) आजरोजी दुसर्‍याच्या मालकीची कोणतीही जमीन कायदेशीररित्या जर एखादा माणूस कसत असेल व अशी जमीन, जमीनमालकाकडून जातीने कसण्यांत येत नसेल तर त्याला कूळ असे संबोधले जाते. याचाच अर्थ तो माणूस जमीन मालकाच्या कुटूंबातील नसला पाहिजे किंवा जमीन गहाण घेणारा नसला पाहिजे किंवा पगारावर ठेवलेला नोकर नसेल किंवा मालकाच्या कुटूंबातील कोणत्याही व्यक्तीच्या देखरेखीखाली जमीन कसत नसेलतर त्याला कूळ असे म्हणतात.

(4) कूळ होण्याच्या नियमाला काही महत्वाचे अपवाद करण्यांत आले आहेत. विधवा किंवा अवयस्क व्यक्ती किंवा शरीराने किंवा मनाने दुर्बल झालेला माणूस किंवा सैन्यदलात काम करणारा माणूस, यांची जमीन दुसरी व्यक्ती जर कसत असेल तरी, त्या व्यक्ती स्वत:च जमीन कसतात असे मानले जाते.

(5) कूळ हक्काच्या संदर्भातील दुसरी बाजू म्हणजे जमीन मालकाने स्वत:हून जमीन कसणे होय. याची व्याख्यासुध्दा कूळ कायद्यात करण्यांत आली आहे. एखादा इसम स्वत: जमीन कसतो काय, हे ठरविण्यासाठी खालील नियम लावले जातात. (अ) स्वत: अंगमेहनतीने तो जमीन कसत असेल तर, (ब) स्वत:च्या कुटूंबातील कोणत्याही इसमाच्या अंगमेहनतीने जमीन कसत असेल तर, (क) स्वत:च्या देखरेखीखाली मजूरीने लावलेल्या मजूरांकडून जमीन करुन घेत असेल तर, असे मजूर कि ज्याला पैसे दिले जात असोत किंवा मालाच्या रुपाने वेतन दिले जात असो. परंतू पिकाच्या हिश्श्याच्या रुपाने जर मजूरी दिली गेली तर तो कूळ ठरु शकतो.

(6) कूळ ही संकल्पना समजण्यास थोडी अवघड आहे, परंतु कूळ होण्यासाठी खालील महत्वाचे घटक मानले जातात.

(अ) दुसर्‍याच्या मालकीची जमीन अन्य इसम वैध किंवा कायदेशीररित्या कसत असला पाहिजे.

(ब) जमीन मालक व कूळ यांच्यात तोंडी का होईना करार झाला असला पाहिजे व तोंडी करार कोर्टात सिध्दा झाला पाहिजे.

(क) असा इसम प्रत्यक्ष जमीन कसत असला पाहिजे व त्या बदल्यात तो मालकाला खंड देत असला पाहिजे.

(ड) जमीन मालक व कूळ यांच्यात पारंपारिकरित्या जपलेले मालक व कूळ असे विशिष्ठ सामाजिक नाते असले पाहिजे.

कूळ कायदा कलम-43 च्या अटी :जी कूळे, यापूर्वी जमीनीचे मालक झाले आहेत, त्यांच्याञ्ृष्टीने कूळ कायदा कलम 43 नुसार जमीन विकायला बंदी केली जाते व तसा शेरा त्याच्या 7/12 वर इतर हक्कात लिहिला असतो. "कूळ कायदा कलम-43 ला पात्र", अशाप्रकारचा हा शेरा 7/12 वर लिहिला जातो. शहरीकरणामुळे किंवा स्वत:च्या गरजेनुसार जमीन विकण्याची आवश्यकता असल्यास, कूळांना अशी जमीन विकण्यापूर्वी प्रांत अधिकारी यांची परवानगी घ्यावी लागते.

जमीन विक्रीची परवानगी कोणाला द्यावी याबाबतचे नियमदेखील शासनाने बनविले आहे.

त्यानुसार कूळ कायदा कलम-43 ला पात्र असलेली जमीन खालील अटींवर विकता येते.

(1) बिगर शेती प्रयोजनासाठी

.(2) धर्मादाय संस्थांसाठी किंवा शैक्षणिक संस्थेसाठी किंवा सहकारी संस्थेसाठी.

(3) दुसर्‍या शेतकर्‍याला परंतू जर असे कूळ कायमचा शेती व्यवसाय सोडून देत असेल तर किंवा जमीन कसायला असमर्थ ठरला असेल तर.

(4) अशी जमीन विकण्यापूर्वी शासकीय खजिन्यात अतिशय नाममात्र म्हणजे जमीनीच्या आकाराच्या 40 पट एवढी नजराण्याची रक्कम भरावी लागते.

याचा अर्थ अशी जमीन सार्वजनिक कामासाठी किंवा संस्थांना विकतांना फारशा जाचक अटी नाहीत. परंतू सर्रास दुसर्‍या जमीन मालकास अतिशय किरकोळ पैसे भरुन मालकीच्या झालेल्या जमीनी, कूळांनी परस्पर विकू नयेत म्हणून वरील क्र.3 ची महत्वाची अट ठेवण्यांत आली आहे. व त्यांना शेवटचा उपाय म्हणून शेती व्यवसाय सोडतानाच अशी कूळ हक्काची जमीन विकली पाहिजे असा याचा अर्थ आहे.

नव्याने कुळहक्क निर्माण होतो का?

आज एखादा इसम कूळ होऊ शकतो का? कूळ कायदा कलम-32 (ग) नुसार दिनांक 1/4/57 रोजी जमीन कसणार्‍या माणसाला मालक म्हणून जाहिर केले आहे,

परंतु आजरोजी जमीनीत नव्याने कूळ निर्माण होऊ शकतो काय? व असल्यास क शा पध्दतीने कूळ निर्माण होतो याबाबत शेतकर्‍यांमध्ये कुतूहल आहे. याबाबतची तरतूद कूळ कायद्याच्या कलम-32 (ओ) मध्ये नमूद करण्यांत आली आहे.

कूळ कायदा कलम-32 (ओ) नुसार आजही दुसर्‍याची जमीन कायदेशीररित्या एक वर्ष जरी दुसरा इसम कसत असेलतर तो कूळ असल्याचा दावा करु शकतो. तथापी त्यासाठी खालील महत्वाच्या अटी कायम आहेत

.(अ) वहिवाटदार व मालक यांच्यात करार झाला असला पाहिजे.

(ब) तो मालकाकडून जमीन कसत असला पाहिजे.

(क) तो खंड देत असला पाहिजे.

(ड) जमीन मालक व कूळ असे विशिष्ठ नातेसंबंध असले पाहिजेत.आजकाल जमीन मालक स्वत:हून कोणतेही करार वहिवाटदाराशी करीत नसल्यामुळे, कलम-32(ओ) च्या दाव्यांची संख्या अतिशय अल्प आहे.

जमीन मालकांमध्ये जागृती निर्माण झाल्यामुळे अशा पध्दतीचे कोणतेही करार तो वहिवाटदाराबरोबर करीत नाही. तथापी आधी पिक पाहणीला नांव लावून घ्यावयाचे व एक वर्षाच्या पिक पाहणीचा 7/12 जोडून दिवाणी न्यायालयातून जमीन मालकाला जमीनीत यायला मनाई आदेश आणावयाचे व त्यानंतर काही दिवसांनी कलम-32 (ओ) नुसार कूळ असल्याचा दावा करावयाचा अशाप्रकारे वहिवाटदार व्यक्ती कूळ असल्याचा दावा सर्वसाधारणपणे करतात.

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Vijay Sagar

RERA Act Suggestions

प्रती, श्री देवेंद्र फडणवीसजी मा. मुख्य मंत्री, महाराष्ट्र राज्य, मंत्रालय, मुंबई 400032

विषय: महाराष्ट्र राज्याने दि.8 डिसेंबर 2016 रोजी राजपत्रात प्रसिध्दी केलेला रेरा कायदा रद्द करून केंद्र सरकारने लागू केलेला रेरा कायदा जसा आहे तसा स्वीकारणे बाबत

मा. महोदय, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत पुणे ने आपणास प्रत्यक्ष भेटून जून 2016 मधे पुणे येथील 40 बिल्डर चे प्रोजेक्ट मधील 15675 ग्राहकांना  त्यांच्या हक्काच्या फ्लॅटचे पझेशन देण्याबाबत व बिल्डर लोकांचे माफीया राजची समाप्ती करणेबाबत निवेदन दिले होते.  सदर निवेदन सादर केले तेव्हा आपण कोणत्याही परिस्थितीत राजकीय दडपण न घेता निष्पक्ष चौकशी केली जाईल असे आश्वासन दिले होते.

त्यामुळे मा. पोलीस महासंचालक यांनी आपल्या आदेशानुसार  2 जुलै रोजी परिपत्रक काढून सर्व पोलीस ठाण्यात बिल्डर विरोधात पोलीसांकडे मोफा कायद्यात तरतूद आहे त्याप्रमाणे गुन्हा दाखल करून घेण्यास कळविले.  त्यामुळे महाराष्ट्र राज्यातील असंख्य ग्राहकांनी आपले सरकार मोदीजींप्रमाणे प्रामाणिक आहे व काँग्रेस व राष्ट्रवादि पक्षाचे काळात मुजोर झालेल्या बिल्डर च्या माफीया राजची समाप्ती होत आहे असे वाटले.

संपूर्ण राज्यात अनेक ठिकाणी बिल्डर विरोधात पोलीसांकडे एफ आय आर दाखल होऊ लागले. लोकांना ज्ञाय मिळेल असे वाटले.

पण बिल्डर लाॅबीने आपल्या मंत्री मंडळीना राजी करून व पोलीस महासंचालक यांना हाताशी धरून दि 17 जुलै रोजी नवीन परिपत्रक जारी केले व पहील्या परिपत्रकातील हवा काढून घेतली.

कायदा मंत्री व गृहनिर्माण मंत्री तसेच विविध सचिव यांनी  8 डिसेंबर रोजी रेरा कायदा राज्य शासनाने लागू करण्यासाठी राजपत्रात प्रसिद्ध केला व महाराष्ट्र राज्यातील ग्राहकांना प्रचंड मोठा धक्का बसला.

महाराष्ट्र राज्य सरकारने केलेला रेरा कायदा हा केंद्र सरकारने जाहीर केलेल्या रेरा  कायदा मधील ग्राहकाभिमुख तरतुदी काढून टाकून बिल्डर धार्जिणे बदल केले आहेत. सदर कायदा हा उत्तर प्रदेश व ईतर राज्यातील रेरा कायद्यापेक्षाही खराब व ग्राहक विरोधी कायदा मंजूर करून महाराष्ट्र राज्याने पूर्वीच्या मोफा कायद्यात असलेल्या चांगल्या तरतूदीपण नवीन रेरा कायद्यात काढून टाकल्या आहेत.

बिल्डर लाॅबीने सदर कायदा ड्राफ्ट केला आहे की काय अशी शंका येते. तसेच आपल्या सरकारमधील मंत्री, आमदार व प्रशासकीय अधिकारी हे ग्राहक विरोधी व बिल्डर धार्जिणे धोरण स्वीकारत आहेत अशी खात्री वाटते आहे.

महाराष्ट्र राज्यातील ग्राहकांना मोदींनंतर केवळ आपणावरच विश्वास आहे तरी आपण यात जातीने लक्ष घालून सदर राज्य सरकारने प्रसिद्ध केलेले 8 डिसेंबर चे रेरा ची राजपत्रे मागे घ्यावीत व केंद्रीय रेरा कायदा जसाचा तसा लागू करावा हि विनंती.

कळावे, आपला विश्वासू

विजय सागर अध्यक्ष अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत पुणे महानगर, 634, सदाशिव पेठ, पुणे 411030

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Vijay Sagar

आर्थिक नियोजन, कर्ज व गुंतवणूकी बाबत

आर्थिक नियोजन ( गुंतवणूक व कर्ज ) व काळजी

30 % उत्पन्न/पगार मासिक खर्चासाठी. 30% उत्पन्न/पगार कर्जाचे हप्ते /फि  इ. 30% उत्पन्न/पगार हे भविष्यासाठी बचत. 10% उत्पन्न छंद, करमणुक व सहल ई. 6 महिन्याचा पगार सहज उपलब्ध व्हावा.

घरासाठीचे कर्ज (पती व पत्नी) दोघांच्या नावावर असावे , त्यामुळे Tax चा अतीरिक्त  लाभ होतो.

वयाच्या 45 नंतर मोठी  जबाबदारी शक्यतो नसावी.

मुलांचे उच्च शिक्षण व विवाह आपल्या 50- 55 पर्यंत ‍ बॅक अकाऊंट Joint account असावे.

आपली संपत्ती (पती पत्नी ) संयुक्त नावे असावी.

आपल्या निधनानंतर मुलांची व्हावी.‍

सर्व कागदपत्रांवर वारसदाराचे नाव आहे की नाही हे वेळोवेळी तपासून घ्यावे ‍‍ ‍ फक्त विम्माची रक्कमच वारसदाराला ताबडतोब मिळावी बाकीची संपत्ती ईच्छा पत्राचे तरतूदीनूसार

आपल्या रीटायरमेंटचे वेळी मिळालेली मोठी रक्कम भावनेच्या आहारी जाऊन मुलांना देवू नका

कोणतीही गुंतवणूक डोळे उघडे ठेवून करा

50 वयाच्या आत आपला कौटंबिक आरोग्य विमा असणे अत्यंत गरजेचे.

कमीत कमी 5 लाख रुपये इमरजन्सी मधे औषध उपचारासाठी/रुग्णालयासाठी राखून ठेवा

तुमच्या लॉकरवर/फीक्स डीपाॅझीटवर विमा असल्यास फक्त एक लाख रुपये भरपाई मिळते

वेगवेगळ्या बॅकेत रक्कम टाकलेली योग्य

गुंतवणूक योग्य प्रकारे करा

कोणतीही कर चोरी करु नका

प्राॅपर्टीची कागदपत्रे सुरक्षित ठेवा

आर्थिक गुंतवणूकीपूर्वी आपल्या C A चा सल्ला घ्या

गुंतवणूकीचा आढावा दर सहा महिन्यांनी घ्यावा

विजय सागर अध्यक्ष अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत पुणे महानगर 634 सदाशिव पेठ,  कुमठेकर रस्ता,  पुणे 30.

( साभार अनामिक )

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